़ दोष न दो निर्दोश है ये तो
़ समाज के लिए जींती हैं और मरतीं है
़ नारी एक और रिश्ते अनेंक
रिश्तों के ताने-बानें में उलझती कभी सुलझती हैं
इसे लाचार कहें या इसकी आवश्कता .!
़ या /फिर/क्या....
मानव हवस की प्यास बुझानें बैठीं है.??
अंश तो इनमें नारायणी का भी होता .!
़ या/फिर/क्या....
अपने धर्म को बद्नाम करने बैठी हैं .??
मानव समाज का है ये इक कालिख धंधा !
़ या/ फिर/क्या....
अपनें बच्चे के पोषण-आहार के लिए बैठी हैं.??
नारी गले में होती एक काले सूत की माला !
़ या/फिर/क्या....
माला नहीं तो अनाधिकार रूप से बैठीं हैं.??
नारी धूरी और रिश्तों की सेतु कहलाती !
़ या/फिर/क्या....
अपनें रिश्तों का तिरस्कार करनें बैठी है.??
समाज ने अच्छा नाम दिया न काम दिया !
़ या/ फिर/क्या....
यहाँ बहिस्कृत और तिरस्कृत हो कर बैठी है.??
नारी अनुपम /रूप अनेंकम/ नाम अनेंकम ...
. !!सामाज ने जो "बाजारु" नाम दिया!!
़ //और//
. !!बिकाऊ संबंध बनानें बाध्य किया!!
शायद उस नाम /ऱिश्तों को ही निभानें बैठीं हैं .?
ं !!*!!नारी का हम सब सम्मान करें !!*!!
!!*!!अच्छे रिश्ते के अनुरूप व्यवहार करें !!*!!
़ ~~~~> मनीष गौतम "मनु"
नारी को बाजारू तो होना ही नहीं चाहिए !
जवाब देंहटाएंऔर यदि नारी बाजारू हो गयी तो पुरुषों को उस बाजार में जाना ही नहीं चाहिए।
सार्थक प्रतिक्रिया आपका आभार
हटाएंआज के समय में भारत में इतना धन है कि रोटी के लिए कोई विवश नहीं है।
जवाब देंहटाएंकिन्तु कुछ बालाओं को जाल में फंसाकर लोग बेच देते हैं । परिणाम कि उनको बाजार में बिठा दिया जाता है।
किन्तु यदि युवतियाँ प्रलोभनो की लालची न हों तो संसार की कोई भी शक्ति उन्हें बाजारू नहीं बना सकती
आपने सामायिक एवं मूल विषय पर उचित प्रकाश डाला है !
जवाब देंहटाएंउत्तम विशलेषण !
बहुतबहुत धन्यवाद