सोमवार, 20 अप्रैल 2015

शोभा


शोभा की 'सभा' है या,
सभा मे है 'शोभा'....!!

सुरज की आभा में शोभा ,
सुबह की पुरवाई में शोभा..!!

बगियन की हर कलीयन में शोभा,
झर-झर झरते  झरने में शोभा ....!!

प्रकृति के हर रंग मे है शोभा.,
शोभा से दृष्टीगत हो जाता जब मन ,..!!

बड़ जाती  है मन की शोभा ,
शोभा बिना सब लगे अ-शोभा ....!!

.                      ~~~~~~> मनीष गौतम "मनु"

मित्रो हो गई है सुबह,

आ गई है चाय..! आप सभी को ,

Gööd Mörning, निंदिया को by by..!

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें