ये इतराना ये इठलाना बस बचपन में ही होता है
खो जाता है बचपन फिर तब यौवन आहें भरता है
यौवन आहें भरता है तब दुनिया से लोहा लेना पड़ता है
तकदीर बनी इनकी ऐसी जन्म दोबारा लेना पड़ता है
नारी- रिश्ता धारिणी "सेतु" मार्ग कहलाती हैं
पर खूद के जीवन को "खूंटे" से बंधी हुई पाती है
अब रंग बदलती दनिया से इनका सफाया होता है.
रक्षिता की रक्षा हो कैसे "मनु" अब व्याकुल रहता है
नारी जीवन दायिनी भी है और जननी भी है
पर खुद के जनम पर अब उसे "शक" होने लगता है
जिस डाल पे बैठे मुर्ख उसे ही काट रहे है
अब होगी कयामत ही कयामत ऐसा लगता है
जालीम अब "मानव सभ्यता" खत्म करनें लगें है
टूट पड़ो जालीमों पर "मनु" का मन ऐसा कहता है
जालीमों भ्रूण हत्या बन्द करो ...! बन्द करो...!
~~~~~~> मनीष गौतम "मनु"
०२/०४/२०१५.
सुप्रभात मित्रों आने वाला "पल" और "कल" गुलजार हो.... ...!! जय माता दी हरि ऊँ......
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