किसान के लिए जीना-मरना एक समान , उगाई दाल सब उसी की खाते है और मौका देख सब के सब उसी के सिनें में दाल मूंगने लगते हैं  ? 
मुझे लगता है -किसान की जिन्दगी से जब ऊपर वाला ही खेलता है ? तो निचे वाले कब बकसनें वालें ? तैयार रहतें हैं  ! 
"जख्मों पर कॉटों की नोंक से मलहम लगानें  !"
किसान भी तो पृथ्वी का सबसे बड़ा " जुआरी" है उसे तो दॉव खेलना ही पड़ता है | चौपड़ लगाना ही पड़ता है | और हार जीत का सामना भी खुद ही करना पड़ता है  | क्योंकि वो -
"खिलाड़ी". नहीं  " जुआरी" है. |"
( जुआरी- प्रकृती के साथ अपनी मेहनत की फसल  दॉव लगानें वाला अर्थात प्रकृती नें साथ दिया तो किसान " आबाद" प्राकृतिक विपदा आयी तो "बर्बाद. !" )
किसान संबंधित जितनें मसले हुऐ हैं | हो रहें हैं | आगे भी होंगे | सभी मसले राजनैतिक फायदे के लिए हैं | अगर कुछ मिला भी है  | तो वो है -
"मौत" या फिर "लॉलीपॉप" 
या इससे ज्यादा कुछ मिला भी तो कह सकते हैं |
"आईसक्रिम रूपी राहत राशि "  
आनंद चंद मिनट का, ज्यादा देर साथ दे सकती  न पेट भर सकती |
किसान की पूर्ती कोई कर सकता ही नहीं , गर करे भी तो कहां से ? किसान के बिना कुछ हो सकता भी नहीं .! अत: किसान अपनी  "आन -  बान - शान "  बनानें का खुद ही मालिक है   |
फंड़ा की __\\__ "बिना मरे सरग नहीं मिलता"
____\\____\\___\ _ __/\_ जय किसान _/\_
.आलेख ~
.                        ~~~~> मनीष गौतम   "मनु"