समाज में अब वो ममता नही 
बेटी संवारने अब क्षमता नहीं 
मूरख बैठे हैं जिस डाल पर 
उसी डाली  को  काट रहे हैं 
गर्भ में पल रही नन्हीं सी जाँ को 
अपनें ही हाथों मार रहें हैं.....!!
जगत-जननी रिश्तों की सेतु 
शुभ लक्ष्मी सौभाग्य लक्ष्मी 
कोमलांगी कोमल कली को
निर्मोही नोंच रहे उखाड़ रहे हैं 
ये क्रुर जन भ्रूणीय हत्यारों 
तुम कौन सा तीर चला लोगें  
अरे तुम तो बेटे की आश में
बेटा पैदा करके  उसे 
बिना ब्याहे  रंडवा/ किन्नर 
जैसा ही   बना  डालोगे 
बेटीयां धरती जैसी होती हैं 
सब  को नव जीवन देतीं  हैं 
मरती हैं पर मिटती नही कभी 
ये तो अपना अंश/ वंशज दे कर 
परिवार आगे बड़ा भव तर जाती हैं 
बेटी है तो हम सबका कल है 
बिन बेटी सारा जग बेकल है 
ये  धरती कहे पुकार के.....
ये आसमा कहे पुकार के.......
प्रकृति का विध्वंस न करो 
भ्रूण  हत्या अब बंद करो
     ~~~~~~> मनीष गौतम "मनु"
.                      07/02/2016
शुभ संध्या मित्रों 
आने वाला "पल"और "कल" मंगलमयी हो ..
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