शनिवार, 13 फ़रवरी 2016

प्यार किसे कहते हैं

(मित्रों कृपया इसे पूरा पढ़ीयेगा)
कलयुग  में प्यार के बदल गए मायने
खो गया सब शिष्टाचार
धूमिल हूई सारी सद्भावनाऐं
हो गये सब रिश्ते लंगड़े लूले
सुना रहे हम प्यार के अफ्साने ॥
प्यार... इस कलयुग का दुर्भाग्य.....?
प्यार - प्यार - प्यार आखिर प्यार है क्या ? प्यार किसी रिश्ते जैसे माता-पिता/भाई-बहन /पति-पत्नी/सभी प्रकार के नाते-रिश्ते और इस कलयुग में "प्रेमी जोड़ों" का मुख्य रिश्ता "प्रेम" ।

प्यार इन सभी रिश्तों के लिए | उमड़ने वाली "चाहत" की एक कशिश या अधिरता या ऐसी व्याकुलता हैजो दिलोदिमाग में प्यार को व्यक्त करने के लिए खलबली मचा देता है ।
यह खलबली ही "संवेदना या भावना हैं |" जिसे हम 'प्यार' कहते है ।
उक्त 'संवेदना/भावना' को रिश्तों के बिच - भिन्न-भिन्न प्रकार से रिश्ते के अनुसार व्यक्त किया जाता है ।
जैसें-चरण स्पर्श कर /सर झुकाकर /सम्मान पूर्वक बोल कर या मंदमंद मुस्कुराकर / स्पर्श कर/गले लगाकर या गले से लगा कर/ बाँहों में भर कर / लिपटकर या लिपटाकर / आँखों में आँखे डालकर / सहला कर / पुचकार कर/ चूमकर / सज सँवर कर / व्यवहार कर / नाच कर या गा कर / ललचाकर / इतराकर /मटक कर /खुशीयों  के या गम के आँसू टपका कर/राम-रामई ले कर या नमन कर/शुक्रिया अदा कर / मिठी-मिठी बातें कर आदि आदि संवेदना या भावनाओं के द्वारा हम प्यार को व्यक्त करते हैं |
प्यार के प्रकारों में -
चूमना/ पुचकारना /सहलाना/ मिठी- मिठी बातें करना / लिपटना/ लिपटाना/ इतराना/मटकना/ सजना/सँवरना / बाँहों में भरना /बाँहों में समा जाना/ गले लगना/ गले लगाना/आंहें भरना आदि आदि !
ये प्यार के बनावटी "रुप" हो गये हैं ।जो आज प्रेमी -जोड़ों के बिच ज्यादा थिरकता है मचलता है ! मगर टूट कर जल्द ही बिखर भी जाता है ।

दिखावटी और बनावटी प्यार के  "रुप" ने सभी रिश्ते-नातों के बीच भी दुरियाँ और दरारें बड़ा दी हैं ! इसीलिये प्यार इस कलयुग का दुर्भाग्य है  । क्या मैने सच कहा ?
आलेख ~~~~~~> मनीष गौतम "मनु"
सुप्रभात मित्रों-
आने वाला 'पल' और कल'मंगलमय हो...

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