शनिवार, 28 मार्च 2015

निरभय्

****_/\_ हे .... नीरभया_/\ _****
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सन् 1857 की वह तलवार फिर
चमकानी होगी...,.
नारीयो तुम्हे वह तलवार फिर
से उठानी होगी, अपने ही घर के
कपूतो की बलि चढ़ानी पढ़ेगी.....!!
सन् 1857 की वह तलवार फिर
चमकानी होगी.....
सत्य, अहिँसा, प्रेम का पाठ ये हैवान न जाने,
अब इन्हे समझाना , साँपो को दुध पिलाने,
जैसी बातेँ होगी..!
सन् 1857 की वह तलवार फिर
चमकानी होगी.......
समाज, कानुन जब अंधा-बहरा-गूँगा हो जाये,
इन्हे राह दिखाना भी तुम्हारा फर्ज बन जाये..!
अर्ज है अब तुम अपने ही शौर्य से, करो ये
पूरा काम, समाज-सरकार की नीँद तुम्हेँ
उड़ानी होगी..!
सन् 1857 की वह तलवार फिर
चमकानी होगी...
एक दामिनी की हैवानी पर बलि चढ़ी है, उस
बलिदानी की कसम तुम्हेँ खानी होगी....!
सन् 1857 की वह तलवार फिर
चमकानी होगी.......
अब हर नारी इक
दामिनी बन जाओ, हैवानो का नरसंहार करते
जाओ, तुम्हेँ उस
दामिनी की आत्मा को शान्ति दिलानी होगी....!
सन् 1857 की वह तलवार फिर
चमकानी होगी.....
नारीयो तुम्हे वह तलवार फिर से उठानी होगी,
अपने ही घर के
कपूतो की बलि चढ़ानी पढ़ेगी.....!!
सन् 1857 की वह तलवार फिर
चमकानी होगी.......
------->> मनीष कुमार गौतम 'मनु' —

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