जय जय जय जय हे.....! राधारानी ।
बनठन कर कहाँ चल दी हो किशन दिवानी ॥
नहीं बताओगी तुम तो हो बहुत सयानी ।
मैं भी तो जानत हूँ तुमरे मन की बानी ॥
आ जाये चाहे जो कुछ भी अड़चन ।
अब हो के रहेगा मनमोहन से आलिंगन ॥
पर नयनाभिराम पिया की राह देखत-देखत ।
प्रेम प्यास और बड़ी तुम बन गई हो चातक ॥
तनिक देखो कैसी पथरा सी गई है आँखें ।
करने केवल प्रिय मन-मोहन के दर्शन ॥
तुम मृगतृष्णा काया सी हो गयी हो बावरी ।
और भटक ही हो कस्तूरी मृग बन वन-वन ॥
राधेरानी ढ़ूंढ़ रही हो मनमोहन को वनवन ।
या करने चली हो मनमोहन से अनबन ॥
मोहन की चाह में रे 'मनु' तू कभी न भटकना ।
ता मन खोज ले मिल जायेंगे मनमोहना ॥
जै जै श्रीकृष्णा मन की मिटा दे सारी तृष्णा ॥।
~~~>मनीष गौतम 'मनु'
दिनांक - १२/०९/२०१६
शुभ संध्या मित्रों -
आने वाला 'पल' और 'कल' मंगलमयी हो ..
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें