'मुई' थी पहले छुईमुई सी ।
अब बन गईं है ज़िन्दादिल ॥
कदम- दर- कदम यूँ रफ्तार बड़ी ।
धरती से उड़ छू लिया अम्बर ॥
वक्त के थपेड़ों ने उसे बदला ।
करती चकित अब करतब दिखाकर ॥
मृगनयनी, मृगतृष्णा, मृगमरीचिका ।
कोमलता, कोमलाॅगी, प्रियदर्शिनी ॥
नामों की खटिया खड़ी कर दी ।
अपने अभिनव जलवे दिखा कर ॥
सजा-संवार रही अब सारी दुनिया ।
पुरूषों के कंधों से कंधा मिला कर ॥
नारी तुम अबला नहीं अब सबला हो ।
आँखों से आँख मिला परिचय दिया ॥
दुनिया से लोहा मंगवा ही लिया ।
बहु आयामों के जौहर दिखा कर ॥
"मुई" छुईमुई अब ओजस्वी हुई ।
घर के पर्दे से बाहर आ कर ॥
हे नारी तुम व्यर्थ नहीं ।
तुम बिन दुनिया का अर्थ नहीं ॥
~~~~~>मनीष गौतम "मनु "
दिनांक ०१/०९/२०१६
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