मंगलवार, 15 मार्च 2016

मालिया, माल लिया निकल लिया

बे मौसम बारिश ने किया सब छिन्न भिन्न 
फसलें हुई चौपट किसानों का हुआ  बंटाधार

अपनें भी जीवन में रंग नहीं ।जंग ही जंग है
आय है कम एक कच्चा घर जो बदरंग  है ।

कूद कूद  कर वानर सेना ने अतंक मचा दिया
और घर की कच्ची छत का कचूम्बर बना दिया 

अब घर के अंदर हर तरफ पानी टपकता है
मजबूरी है कमरे में छतरी तान रहना पड़ता है ।

एक दिन श्रीमती ने कहा ऐसा कब तक चलेगा  अजी कच्ची छत पक्की क्यों नहीं करवा लेते ।

अरे बैंक से लोन ले लेकर लोग मालीया हो गये  कमोबेश  तुम पक्के घर के मालिक बन जाओ ।

हमने भी पत्नी के दिये  गणित को हल किया और सवाल झट हल पत्नी को आवाज लगाया ।

अरी सुनती हो तुम्हारी बैंक लोन की नसीहत
सर-आँखों पर जो अपने लिए बड़ी कारगर है ।

हम बैक जा लोन  का  आवेदन शिघ्र देते हैं
कच्ची छत पक्की करने सपना पूरा करते हैं ।

बैंक पहुँचते ही नोटिस बोर्ड पर नजर टकराई बोर्ड पर लिखा था अभी हम खुद कंगाल है  ।

मालिया ने हमें कर दिया है कंगाल जिसे हम
ढूँढने निकल पड़े है और जल्द ही लौट रहे हैं ।

मालिया नें हमें जबरदस्त चूना लगाया है 
हम भी खुद सड़क पर आ कर खड़े हुए हैं  ।

आज हम खुद ही कर्ज से लदे-दबे पड़े हुए है
फिलहाल बैंकलोन संबंधी कार्य बंद पड़े हुए है

अत: हमारी वापसी कत धिरज बनाए रखना
शान्ति के साथ बैठना,शान्ति बनाए रखना ।
        
             ~~~~~~> मनीष गौतम "मनु"

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