शुक्रवार, 2 सितंबर 2016

"मुई", छुईमुई -

'मुई'    थी    पहले      छुईमुई    सी  ।
अब   बन    गईं    है       ज़िन्दादिल ॥

कदम- दर- कदम  यूँ  रफ्तार  बड़ी  ।
धरती  से  उड़   छू   लिया    अम्बर ॥

वक्त    के    थपेड़ों   ने  उसे  बदला  ।
करती चकित अब  करतब दिखाकर ॥

मृगनयनी,  मृगतृष्णा,  मृगमरीचिका ।
कोमलता,  कोमलाॅगी,   प्रियदर्शिनी ॥

नामों   की   खटिया  खड़ी  कर  दी ।
अपने  अभिनव  जलवे   दिखा  कर ॥

सजा-संवार रही   अब सारी दुनिया ।
पुरूषों के कंधों से  कंधा मिला कर ॥

नारी तुम अबला नहीं अब सबला हो ।
आँखों  से आँख मिला परिचय दिया  ॥

दुनिया  से  लोहा  मंगवा  ही   लिया ।
बहु   आयामों  के  जौहर  दिखा कर ॥

"मुई"   छुईमुई   अब  ओजस्वी  हुई ।
घर   के   पर्दे    से   बाहर  आ   कर ॥

हे नारी तुम व्यर्थ नहीं ।
        तुम बिन दुनिया का अर्थ नहीं ॥

      ~~~~~>मनीष गौतम "मनु "
दिनांक ०१/०९/२०१६

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